अगर इस करीब ढाई महीने के घटना चक्रों पर सरसरी निगाह डालने के बाद एक विचार लगातार मन को मथे दे रहा और ये जानने की इच्छा बलवती हुई है कि क्या समाज वाकई सद्गुणों से भर गया है और लोग सद्गुणी हो गए हैं. हालाँकि विश्वव्यापी पीड़ा काल में लोगों ने जिस तरह एकाकार होने की भूमिका का निर्वहन किया है, सराहनीय तो अवश्य है. साथ ही कुछ अनुत्तरित से सवाल भी उठ खड़े हुए हैं. इनका जवाब अवश्य ही समय के गर्भ में या ऐसे सद्गुणियों के पास होगा. वैसे इनके दान-धर्म का जयकारा चहुँओर है.
बहरहाल जो भी हो, इस घटनाक्रम से पूर्व मेरा ऐसा मानना था कि सद्गुण एक प्रकार की बुद्धि है जिसे सिखाया नहीं जा सकता, इसलिए ये ज्ञान के दायरे में नहीं आता. जो लोग ये दावा करते हैं की यह एक ज्ञान है और इसे सिखाया जा सकता है, वे यह भूल जाते हैं कि उनके अच्छे काम का परिणाम ज्ञान की नहीं बल्कि उनके सच्चे विचारों की देन है. तो क्या समस्त सहायता सच्चे विचारों की वजह से है. आपकी क्या राय है?
अगर सच कहूं तो मैं आज तक ऐसे व्यक्ति से नहीं मिला जो सही मायने में बता सके कि सद्गुण क्या है? हालाँकि जीवन में सद्गुण के विविध प्रकार अवश्य उपलब्ध हैं, जैसे पुरुषों ( परिवार को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना, सार्वजनिक मुद्दों का प्रबंधन समेत शत्रुओं पर विजय और दोस्तों की मदद करना), महिलाओं (घर का प्रबंधन समेत अपने समस्त अधिकारों की सुरक्षा), बच्चों और वयोवृद्धों और ऐसे ही समस्त लोगों के लिए विभिन्न प्रकार के सद्गुण हैं. पर यह सद्गुण की परिभाषा नहीं बल्कि बल्कि उसकी विविधताओं की सूची भर है.
वर्तमान सन्दर्भ में दार्शनिक सुकरात और शिष्य प्लेटो के बीच हुई एक चर्चा की याद आ रही, जिसका जिक्र प्रासंगिक होगा. सुकरात ने स्पष्ट कहा है कि सद्गुण ईश्वर प्रदत्त उपहार है, जो समझ द्वारा निर्देशित नहीं होता. तो क्या कहें पीड़ितों को ईश्वर का उपहार मिला।
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If, after a cursory glance at the events of this nearly two and a half months, a thought is constantly pouring in the mind and the desire to know whether the society is truly filled with virtues and people have become virtuous. However, the manner in which people have discharged the role of being monogamous during the period of worldwide suffering is commendable. Also questions have arisen from some unanswered. The answer to these will surely be in the womb of time or with such virtues. By the way, their donation and religion is all round.
However, before this development, I believed that virtue is a type of intelligence that cannot be taught, so it does not come under the purview of knowledge. Those who claim that it is a knowledge and it can be taught, they forget that the result of their good work is not the result of knowledge but their true thoughts. So all the help is due to true thoughts. What is your opinion?
If I can tell the truth, till date I have not met such a person who can truly tell what is virtue? Although there are a variety of virtues available in life, such as men (providing economic and social security to the family, conquering enemies and helping friends, including managing public issues), women (protecting all their rights, including managing the household) , There are different types of virtues for children and the elderly and all such people. But this is not a definition of virtue, but rather a list of its variations.
In the present context, a discussion between philosopher Socrates and the disciple Plato is missing, which will be relevant. Socrates has clearly stated that virtue is a gift given by God, which is not guided by understanding. So what to say, the victims got the gift of God.
अपनी जिम्मेदारियों का वहन इमानदारी से करना भी सद्गुण है। सद्गुण किसी के द्वारा किसी को दीया नहीं जा सकता। लेकिन सत्संग से जाना जा सकता है और बुद्धि के द्वारा समझ कर अपनाया जा सकता है बुद्धि तेज होने का अर्थ यह कतई नहीं है कि वह सद्गुण को अपना लेगा या वैसा आचरण करने लगेगा। सद्गुण जन्म के साथ ही आता है वह ईश्वरीय है। परिस्थिति वश या स्वार्थ वश सद्गुण अपनाने का ढोंग
ReplyDeleteकरना यह एक कला है जिसे इंसान करते रहता है। तटस्थ रहकर ही इन सब चीजों को देख सकते हैं।
बहुत बढ़िया विचार आपने लेख के माध्यम से व्यक्त किया है।
योगेंद्र यादव
Sadgun kuchh case me janm se aa sakta parntu mera vichar h ki ye janam data se aata h. Agar koe janam data sadguni nahi h tab bahut kam chance hota h ki bachhe sadguni ho. Sadgun wo jo manushya sheel ka palan karta h. Sadgun wah jo prakrati ke against n ho. Jo apne hit se upar ho.. Aadi...
ReplyDelete.....sadguns can befound in a human being in 2 ways i.e, 1st via our parents (inherited) and 2nd by our own experience in our life (doesn't matter how long our life is)..........
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