कोरोना वायरस के प्रकोप से पूरी दुनिया तो थर्राइ हुई है ही, बेचारे आशिक़ों का भी बुरा हाल है. दो महीनों से अधिक का वक़्फ़ा गुजरने के बाद भी मिलन की कोई सूरत नज़र नहीं आ रही है. मॉल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, कैफ़े, पार्क समेत तमाम मिलन स्थल LOCKDOWN की भेंट चढ़ गए हैं, इधर सरकार के मुखिया और विवाहित होते हुए भी अविवाहित समान प्राइम मिनिस्टर मोदीजी के नए तुर्रे ने सनसनी और बढ़ा दी है, जिसमे LOCKDOWN 5 की घोषणा संभावित है. पक्की ही समझ लो.
जरा कल्पना करें वैसे नव-आशिक़ों की जिनका इश्क़ 22 मार्च 2020 के पूर्व किसी तरह शुरू हुआ हो और मामला अभी देखा-देखी के प्रारंभिक स्तर पर ही हो. LOCKDOWN OPEN होने के बाद उनका क्या होगा? नक़ाब से पूरी तरह सराबोर लैलाओं को पहचानना एक टेढ़ी खीर होगी, अगर गलत दरवाज़े दस्तक दे दिया तो जूतम-पैजार की स्थिति हो जाएगी। इस बात का यकीन न हो तो खाकसार आपको 60 और 70 के दशक की हिंदी फिल्मों की ओर ले चले. जिसमें मध्यस्तों को, जो अक्सर नायिका की खास सहेली हुआ करती थी, मज़बूरन नक़ाब उलटाकर नायक को यकीन दिलाती थीं कि शहज़ादे गुलफाम! ये आपकी वाली हूर नहीं है. वो तो उधर रही. आपकी याददाश्त दुरुस्त करने के लिए मुझे अपने ज़माने के जुबली कुमार राजेंद्र कुमार और साधना की फिल्म मेरे मेहबूब की याद आ रही है. शायद आपके जेहन में पूरी फिल्म और वो दृश्य कौंध गया होगा।
क्या 2020 का मौजुदा दौर आशिक़ों को 50 से 60 साल पीछे तो नहीं ले जायेगा ? जहाँ एक बार दीदार के लिए हज़ार मशककतें करनी पड़ती थीं. ये तो नहीं दोहराना पड़ेगा कि मेरे मेहबूब तुझे मेरी मोहब्बत की कसम, सामने आकर पर्दा हटा दे रुख से. ऊफ कोरोना! क्या आफत ढाई है.
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ENGLISH TRANSLATION
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The whole world is shaken by the outbreak of Corona virus, poor LOVERS also have a bad condition. Even after passing the time of more than two months, there is no sign of union. All the meeting places including malls, colleges, universities, cafes, parks have been gifted to LOCKDOWN, the head of the government and being married and unmarried, the same prime minister Modiji's new turret has added to the sensation, with the announcement of LOCKDOWN 5 potential is. Understand it for sure
Just imagine those newcomers whose love started somehow before 22 March 2020 and the matter is still at the initial stage of sight-seeing. What will happen to them after being LOCKDOWN OPEN? It would be a crooked heap to identify the dailies completely from the map, and if the wrong door is knocked, the situation will be a mess. If you are not sure about this, then Khakasar will take you to the Hindi films of the 60s and 70s. In which the middlemen, who often used to be special friends of the heroine, inverted the mask, convincing the hero that Shehzade Gulfam! This is not your fault She is getting there. In order to mend your memory, I am reminded of my days Jubilee Kumar Rajendra Kumar and Sadhana's film Mere Mehboob. Perhaps the whole film and that scene in your mind must have flashed.
Will the current round of 2020 not take the lovers back 50 to 60 years? Where once a thousand tricks had to be done for Didar. You will not have to repeat that my lover, I swear on my love, come out and remove the curtain from my stand. Oof Corona! What trouble is this..
Very funny 😂
ReplyDeleteNice one
ReplyDeleteMere mehboob
ReplyDeleteबहुत खुब आपने कोरोना प्रेम का चिंतन किया है और यही होनेवाला भी है।अब शादी विवाह डिजिटल हो जाएंगे। देश विदेश में चल रहे स्पा ट्रीटमेंट सेंटर में ताले लग जायेंगे। लोग अपनी दाढ़ी बाल खुद बनाएंगे सबसे बड़ा धक्का तो सिनेमा हॉल को लगेगा। सिनेमा बनने का कोई मतलब नहीं होगा। कोरोना काल के बाद की दुनियां बिल्कुल बदली बदली सी होगी। मंदिरों की भीड़ भी गायब हो जाएगी। पब डिस्क भी कोरोना की भेंट चढ़ गए। पार्टियां तो किसी युग की बात होगी। क्रिकेट के मैदान की भीड़ भी गायब हो जाएगी। रेस्टोरेंट में खाना ऐसा लगेगा कि ये किसी युग की बात रही होगी कोरोना के बाद कि दुनिया बिल्कुल बदली बदली होगी। पार्टियों की रैली का क्या होगा।ये भी सोचने वाली बात होगी अब नेता जी कैसे जनता को उल्लू सीधा कर पायेंगे। अब शायद कुश्ती दंगल प्रतियोगिता सब समाप्ति के दौर की बात होगी। सभी रिश्ते सिमट जायेंगे।देखना बड़ा दुखद होगा कोरोना के बाद का काल।
ReplyDeleteSo funny :)
ReplyDeleteBarhiya
ReplyDeleteNow it's age of internet ....I think ...and ..we should think positive ! 👍🙏😊
ReplyDeleteGood, funny and 😆 interesting. 👍👍👌👌👏👏
ReplyDeleteमिलन में 70 -80 के दशक में जो बाधाएं होती थी वह आज सेकेंडरी हो गई है । संचार तंत्र इतना मजबूत है कि मिलना भले ही ना हो पाए दूरदर्शन तो हो ही सकता है।
ReplyDeleteनौजवानों और 70 -80 के दशक के अनुभवी नौजवानों के लिए यह लेख गुदगुदाने वाला है।
योगेंद्र यादव बिलासपुर
मिलन में 70 -80 के दशक में जो बाधाएं होती थी वह आज सेकेंडरी हो गई है । संचार तंत्र इतना मजबूत है कि मिलना भले ही ना हो पाए दूरदर्शन तो हो ही सकता है।
ReplyDeleteनौजवानों और 70 -80 के दशक के अनुभवी नौजवानों के लिए यह लेख गुदगुदाने वाला है।
योगेंद्र यादव बिलासपुर