खेलूं नहीं कूदूं नहीं बन जाऊं मैं भोंदू राम. टीवी पर एक उत्पाद के प्रमोशन के लिए दिखाया जाने वाले स्लोगन की याद इन दिनों करीब-करीब सभी अभिभावकों को आ रही होगी. अब बच्चे खेलने के लिए घरों से बहार जाने की जिद पर अड़े हुए हैं. वाकई में उन्हें रोकना अब कठिन चुनौती सी बन गईं गयी है. ये समस्या विकराल रूप लेते जा रही है और सभी इस बात के लिए फिक्रमंद हैं कि आखिरकार उन्हें घरों से बाहर निकलने से कैसे रोका जाये?
सही भी है. आखिर बच्चे पिछले दो महीने के अधिक वक्फे से घरों से बहार नहीं निकलें हैं और उन्हें अपने दोस्तों समेत उन तमाम खेलों की याद आ रही है, जिसके वे आदी हैं और उन्हें वंचित किया जा रहा हैं. बच्चों को कोरोना-फोरोना के नाम से चिढ हो गई हैं. उनका अब ये साफ़ कहना है की संक्रमण होगा तो होगा, देख लेंगे। लेकिन खेलने से उन्हें अब कोई नहीं रोक सकता. सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और sanitiesation जैसे शब्दों से तो उन्हें नफरत सी हो गई है. वैसे कहा भी गया है की बालहठ से निपटना आसान नहीं, देवताओं तक को पसीना आ जाता था. इंसान कैसे निपटे?
लेकिन बच्चों को उनकी जिद पैर छोड़ना सही नहीं होगा, जैसे इतने दिनों तक किस्से-कहानियां सुना ते, अख़बार- मैगज़ीन पढ़ाते, लूडो खेलाते, पतंगबाज़ी कराते बिताया है. आगामी कुछ सप्ताह और बिताना ही होगा। उन्हें मोबाइल और लैपटॉप भी पकड़ाना ही होगा, मज़बूरी जो है. वैसे इस कठिन दौर में एकल परिवार की खामियां खुलकर सामने आ गई है और लोगों संयुक्त परिवार की अहमियत समझ आने लगी है. परिवार में दादा-दादी, नाना- नानी की क्या अहमियत है. चाचा- चाची, बुआ- फूफा, मौसी और चचेरे भाई-बहन से रिश्ते कैसे गुलज़ार थे. कोरोना ने ये पाठ भी पढ़ाया है. आपदाएं काफी कुछ सीखा जाती हैं.
....................................................................................................................................................ENGLISH TRANSLATION
....................................................................................................................................................
I should not play, I will not become a DUMB. The memory of the slogan shown for promotion of a product on TV will be coming to almost all the parents these days. Now the children are insistent on going out of their homes to play. In fact, stopping them has become a difficult challenge. This problem is getting formidable and everyone is worried about how to prevent them from finally getting out of their homes?
It is right too. After all, the children have not gone out of their homes for the last two months, and they are missing all the games they are accustomed to and are being deprived of. The children are irritated by the name of Corona-Forona. They now say clearly that if there is an infection, it will be seen. But no one can stop them from playing now. They have started hating words like social distancing, mask and sanitiesation. It has been said that it is not easy to deal with hairs, even the gods used to sweat. How do humans deal?
But it would not be right for the children to give up their stubbornness, for example, have spent so many days telling stories, newspapers, teaching magazines, playing ludos, kite flying. The next few weeks will have to be spent more. They have to hold mobiles and laptops as well, which is strong. By the way, in this difficult period, the flaws of single family have come out clearly and people have started understanding the importance of joint family. What is the importance of grandparents in the family. How was the relationship with uncle - aunt, aunt - aunt, aunt and cousin. Corona has also taught this lesson. Disasters make us learn a lot.
Really so......
ReplyDeleteVery nice blog which we are actually experiencing
Barhiya
ReplyDeleteVery nice blog
ReplyDeleteबच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में संयुक्त परिवार की महत्ता पर बहुत ही अच्छा लेख है ।
ReplyDeleteFunny with seriousness
ReplyDeletevery true. Aapne bachho k man ki bat ko ache se bataya hai sath hi unke liye sahi salah v di hai.👌👌
ReplyDeleteVery cool Importance of Joint Family,......
ReplyDeleteVery nice and purely correct message for Childrens
ReplyDeleteWell framed message for children 👌
ReplyDelete