छू-मंतर काली कलकत्ते वाली तेरा वचन न जाये खाली। अलख निरंजन। जय हो कोरोना मैया, अगर नाराज़ हो गई हो तो मान भी जाओ और अपना प्रकोप ख़तम कर उस देश को वापस चली जाओ. जहाँ से आना हुआ है, हमारे देश और रहवासियों को बख़श दो. कुछ इन्ही अंदाज़ में देश के एक प्रान्त बिहार के ग्रामीण अंचल की महिलाऐं अपने इष्टदेव से मनुहार कर कोरोना के जानलेवा वायरस को मनाने की कोशिश कर रही हैं. भय के साये तले और शिक्षा से महरूम इन महिलाओं के रुदन विलाप और क्रंदन ने समाचार पत्रों और खबरिया चैनलों को एक चटपटा मसाला दे दिया है, जिससे उनकी दुकान एक और दिन के लिए आबाद हो सके. लेकिन इनकी तह में जाने से न किसी को सरोकार है और ना ही जरुरत। बस अन्धविश्वास के इस रोचक विषय पर एक गरमागरम बहस कराओ और चलते बनो.
देश और प्रदेश की सरकारों ने ऐसे विषयों पर सदैव की तरह वैसी ही दूरी बना ली है. मानो इसपर कुछ बोलने और करने से कोरोना वायरस उनसे चिपट जायेगा और सबकुछ मलियामेट जायेगा, राजनैतिक फायदा नहीं होने की सूरत में इन बिरादरान का मौन वैसे भी प्रखर ही होता है, बिलकुल नैसर्गिक. ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर का सिद्धांत इनका मूलमंत्र होता है. ऐसे आड़े वक़्त में एकला चलो के सिद्धांत को साधते हुए इनकी यात्रा जारी रहती है और रहेगी.
दरअसल प्राकृतिक आपदा और महामारी काल में इस तरह घटनाओं का ये कोई पहला मामला नहीं बल्कि सदियों पुराना इतिहास रहा है, ज़रा इतिहास के पन्नों को खंगालेंगे तो प्लेग, हैज़ा, चेचक, डेंगू, इन्फ्लुएंजा से लेकर तूफ़ान और बाढ़ जैसे कई अवसरों पर पूरा देश मन्नतों से लेकर इष्ट के दरवाज़ों तक गुहार लगाता ही है. यूरोप, अमेरिका से लेकर अरब एवं अफ्रीकी देश भी अछूते नहीं है, चर्च से लेकर मस्जिदों तक में फरियाद की जाती है.
वहीँ पूरा हिंदुस्तान विशेषकर बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे देश के हिंदी पट्टिकाओं वाले राज्यों में इस तरह के घटनाओं की अधिकता अवश्य है, इसके मूल में अशिक्षा के साथ भय की भूमिका सर्वप्रमुख हो सकती हो सकती है. साथ ही सत्ता के विफल या पूरी तरह से कामयाब नहीं होना भी एक प्रमुख कारण नहीं। क्या कुछ और भी वजहें हो सकती हैं?
हमें ये जानने की कोशिश नहीं करनी चाहिए की आपदाकाल में जनता इस तरह के आचरण का क्या मनोविज्ञान है?
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ENGLISH TRANSLATION
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Chhoo Mantar Kali Calcutta tera vaada jaayen nahi Alakh Niranjan. Jai Ho Corona Maia, if you have become angry, then agree and end your wrath and go back to that country. Beware of our country and residents from where we have come. Some women in rural areas of Bihar, a province of the country, are trying to convince the deadly virus of Corona by pleading with their presiding deity. Under the shadow of fear and bereft of education, the cry and cry of these women has given a spice to newspapers and news channels, so that their shop can be populated for another day. But no one has any concern nor need for going under them. Just have a hot debate on this interesting subject of superstition and go on.
The governments of the country and the state have always maintained the same distance on such topics. As if speaking and doing something on it, the corona virus will cling to them and everything will go malate, in the event of no political gain, the silence of these fraternities is still very clear, very natural. The principle of hatred with neither Kahu nor hatred with Kahu is their motto. In such a time, his journey continues and will continue, keeping the principle of Ekla Chalo.
In fact, in natural calamity and pandemic period, this is not the first case of such incidents but a centuries-old history, if you will search the pages of history, then the entire country on many occasions like plague, cholera, smallpox, dengue, influenza and storm and flood. From the vows to the doors of the favored one. From Europe, America, even Arab and African countries are not untouched, from churches to mosques.
While the whole of Hindustan, especially in the states with Hindi plaques in the country like Bihar, Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, Chhattisgarh, there is a lot of such incidents, fear of illiteracy may be the most important role in its origin. Also, the failure of power or not being fully successful is also not a major reason. Can there be any other reason?
We should not try to know what is the psychology of such behavior in public during disaster?
sahi hai andhviswas hi sahi kam se kam bhagwan se prayer to ki ja rahi hai.bhaut sare intellectual logo ki tarah aarop lagane me hi apna time bita rahe hain.aapka blog ek alag tarah k logo per dhyan le ja raha hai.
ReplyDeleteBharat mata ki jai.
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