क्रिकेट और सिनेमा हिंदुस्तानियों के जीवन का अविभाज्य अंग हुआ करता है, कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं की हमारी नसों में ये रक्त की तरह बहा करती है. जिस तरह धड़कनें हमे जिन्दा होने का अहसास कराती हैं, कुछ ऐसा ही मुकाम सेल्युलॉयड के परदे और खेल के मैदान पर होने वाली इन हलचलों को हासिल है. लेकिन दो महीने से अधिक का वक्फा और कई शुक्रवार बिना नयी फिल्मों के रिलीज़ के गुज़र जाने के बाद भी सांसे मानो चल रही है. शायद इसे ही मानवीय जिजिविषा कहते हैं, जिसके हम सच्चे हक़दार हैं.
इसी बीच आईपीएल जैसा क्रिकेट तमाशा बिना अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराए आहिस्ता से कैसे गुज़र गया, पता ही नहीं चला. वर्ना करीब दो महीनों तक क्या गरीब, क्या अमीर, रिक्शा-ठेले विलों से लेकर छोटे दुकानदार और कॉर्पोरेट दफ्तरों में विराजमान सीईओ से लेकर अदना सा कर्मचारी। स्कोर जानने की बेताबी सभी में समान रूप से हुआ करती थी. किसी का मोबाइल अगर काम नहीं कर रहा हो तो अपने अहंकार के घोड़े से उतरकर गार्ड तक से विराट की सेंचुरी हुई या नहीं, पूछने से गुरेज़ नहीं करते थे. देश इस प्लेटफार्म पर एक समान लगता था, नो ईगो हिक-हैक.
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उत्सव और जलसा प्रेमी हिंदुस्तान की शायद यही सबसे बड़ी ताकत और सामर्थ्य हैं, हम हिंदुस्तानी खेल और सिनेमा के प्रति इतने समर्पित और जुनूनी हैं की बड़े-छोटे का अहंकार विदा हो जाता है, कोई दुरी नहीं. समभाव, बिलकुल मन को सुकून देने वाली. अतुल्य भारत. लेकिन पता नहीं किस कम्बख्त की बद-दुआ लग गई. एक अदने से वायरस ने हमारी जिंदगी की कुंडली का योग पलटकर रख दिया. मानो किसी ने स्क्रैम्बल का बटन दबा दिया है. अब कोई नहीं पूछ रहा कि गुलाबो-सिताबो को कितने स्टार्स मिले, इसकी रिपोर्ट क्या है, बच्चन साहेब ने कैसा काम किया, आयुष्मान की छठवीं बैक टू बैक हिट है या नहीं.
सबकुछ पहले जैसा होने की प्रतीक्षा 139 करोड़ के साथ दुनिया की 700 करोड़ जनता को है, उम्मीद है आफत की इस परकाला वायरस से जल्द निजात मिले और सामान्य जीवन का मार्ग प्रशस्त हो सके, जहाँ थोड़ी खुशियां भी हो और गम भी.
......................................................................................................................................................................ENGLISH TRANSLATION
...................................................................................................................................................................... Cricket and cinema are an inseparable part of the life of Indians, even people say that it flows like blood in our veins. The way beats make us feel alive, something similar happens on celluloid screen and on the playground. But after more than two months' release of Wakfa and many Fridays without the release of new films, the breath is going on. Perhaps it is called human Jeevishisha, of which we are the rightful owners.
Meanwhile, how a cricket spectacle like IPL went through the plane without registering its presence was not known. Otherwise, for about two months, what is poor, what is rich, from rickshaw-cart carts to small shopkeepers and CEOs sitting in corporate offices. There was equal ability to know the score equally. If someone's mobile is not working, then he would not shy away from asking his ego's horse and asking the guard to make a century of Virat or not. The country seemed similar on this platform, no ego hick-hack.
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Celebration and Jalsa lovers are perhaps the biggest strength and strength of India, we are so dedicated and passionate about Indian sports and cinema that the arrogance of big and small is gone. Equally, absolutely relaxing the mind. incredible India. But I do not know which one got the bad luck. The virus has reversed the horoscope of our lives with a single hand. As if someone has pressed the scramble button. Now no one is asking how many reports did Gulabo-Sitabo get, what is the report, how did Bachchan Saheb work, Ayushmann's sixth back to back hit or not.
With the 139 crores waiting for everything to happen first, the 700 crore people of the world are hopeful that this perilous virus can get rid of the virus soon and pave the way for normal life, where there is a little happiness and sorrow too.
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Acha hai..blog me aapne jo wish ki hai wo jald puri ho.Hum Indian utsavo ko manate rahen.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने। ऐसे ही निरंतर अलग-अलग विषयों पर अपनी कलम चलाते रहिए शुभकामनाएं।
ReplyDeleteयोगेंद्र यादव
बहुत अच्छा लिखा है आपने। ऐसे ही निरंतर अलग-अलग विषयों पर अपनी कलम चलाते रहिए शुभकामनाएं।
ReplyDeleteयोगेंद्र यादव
Aap ese hi likhate rahe. ..Wakat gujarta jaye.
ReplyDeletePahle lock down kiya kam thi... Ab contaminated zone hone ke bad jindgi ruk si gae h..
Khayal bhi kund par gai
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